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लेखक की तस्वीरMunna Kumar Rahi

अंकुर डाहाके के विघ्नहर्ता


हाराष्ट्र में गणपति की पूजा भारत के अन्य हिस्सों से बहुत ही अलग और अद्भुत होती है , इसका प्रभाव यहाँ के जन मानस पर भी बहुत दीखता है। स्वाभाविक है की कलाकार मन भी इससे अछूता नहीं रह सकता है। अरुण दाभोलकर जैसे कलाकार उम्र भर गणपति की ही रचना करते रहे जो की अपने आप में अद्भुत रचना है,

बात अगर अंकुर प्रशांत डाहाके की करें तो वैसे तो इन्होने रहेजा स्कुल ऑफ़ आर्ट मुंबई से जी डी आर्ट करने के बाद भारत के सुप्रसिद्ध चित्रकार स्वर्गीय जॉन फर्नांडिस से कला के गुर सीखे। तत्पश्चात इन्होने अपनी कला को ग्रीटिंग्स कार्ड डिज़ाइन में आजमाया और उनदिनों आर्चिस गैलरी में छपे इनके गणपति के डिज़ाइन को काफी प्रसिद्धि मिली ,इसके बाद पूर्णतः भारत में बनने वाली पहली एनिमेटेड मूवी "हनुमान "जो २००५ में सहारा परसेप्ट पिक्चर के बैनर तले रिलीज़ हुई, में बी जी आर्टिस्ट की भूमिका निभाई।


लेकिंन कालांतर में इन्होने महसूस किया की अपनी भावनाओ को ठीक तरह से अपने कैनवस पर ही विस्तार दिया जा सकता है ,बातचीत के क्रम में उन्होंने बताया की अपनी अंतर भावनाओं को विस्तार से बयक्त करने के लिए अपना कैनवास होना आयश्यक है जो किसी भी नौकरी के संभव नहीं है।

गणपति सामान्य जान मानस के आराध्य रहे हैं, हिन्दू धर्म में ऐसी मान्यता है की श्री गणेश बुद्धि के देवता है यही वजह की किसी भी धार्मिक अनुष्ठान में पहले गणपति की पूजा की जाती है।

अंकुर डाहाके का रचना संसार अद्भत और विशाल है. वैसे तो इन्होने पेंटिंग के हर माध्यम और विषय में काम किया है. लेकिन एक्रिलिक रंगों के साथ नाइफ का संजोग अद्भुत जान पड़ता है ,बिलकुल जैसे अबोध बालक मिटटी के साथ खेलता है, इसकी बानगी देखने को मिली पिछले ही हफ्ते मुंबई में।


अभी २ अगस्त से ८ अगस्त तक नेहरू सेंटर में इनकी नवीनतम कृत्यों को प्रदर्शित किया गया। इन्होने विघ्नहरता गणेश के विविध रूपों को प्रदर्शित किया है, जिसमे रीयलिस्टिक से लेकर ऑबस्ट्रक्ट हर तरह के काम प्रदर्शित हैं. जिसमे गणपति के विभिन्न नाम के अनुसार ,सुदृढ़ संयोजन रंगों ,रेखाओं का चयन के साथ साथ कैनवास और फ्रेम का भी चयन विषय वस्तु को ध्यान में रखकर किया है।कहते हैं विषय वस्तु के हिसाब से कैनवास का चयन जैसे हॉरिजॉन्टल,वर्टीकल सर्कुलर या चौकोर , जो पेंटिंग्स को बहुत ही प्रभावी बनता है ,यही वजह है की दर्शक चित्रों के साथ संवाद स्थापित किए बिना नहीं रह पाते हैं।


अंकुर बताती है की कैनवास पर गणपति के विविध रूपों की रचना बिलकुल गणपति की उपासना समझ कर करती हैं ,पेंटिंग को प्रारम्भ से पूर्ण होने तक एक अभूतपूर्व अनुष्ठान का अनुभव होता है उन्हें । और हर बार जब भी नयी कृति बनती हूँ तो एक अलग अनुभव यात्रा से गुजरती हूँ ,ये मेरे लिए अध्यात्म का एक मार्ग है ,और जब प्रदर्शनी में आनेवाले दर्शक उन अनुभूतियों को महसूस करते हैं तो ऐसा प्रतीत होता है की स्वयं गणपति मेरे माध्यम से मेरे दर्शकों से संवाद स्थापित कर रहे हैं. यह मेरे लिए एक अतुलनीय आनंद की प्राप्ति होती है।

कुल मिलकर एक सफल प्रदर्शनी कहा जा सकता है जहाँ चित्र ,चित्रकार और दर्शक एक दूसरे के साथ पूर्णतः संवाद की स्थिति में दिखे।


राही एम्। के। मुंबई। इंडिया।

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